पत्रकार हामिद अली खां
देशभर में सूफी संतों का शहर के नाम से मशहूर जिला बदायूं के छोटे-बड़े सरकार की दुआओं से जिले के कई लोगों ने हिन्दुस्तान ही नही बल्कि पूरी दुनिया में जिले का नाम रोशन किया है, जिनमे कुछ लोग ऐसे भी है जिनकी पहचान कामयाबी और रोशन ख्याली से होती है, ऐसे लोगों में शुमारो की फेहरिस्त बनाई जाये तो वह काफी लंबी हो जायेगी। खैर उन्हीं लोगों में से एक नाम है अकील बख्श का ये वह शख्सियत है कि इनके हालाते जिन्दगी का मुताला किया जाये तो खुदा के फज्ल ओ करम और मेहनत के नतीजे पर यकीन और पुख्ता हो जाता है कि, इनकी जिन्दगी हर उस नौजवान के लिए एक मिसाल है जो कामयाबी को हासिल करने के लिए ख्वाहिशमंद है।
अकील बख्श साहब की पैदाईश सन 1954 में बदायूं जिला मुख्यालय एवं शहर के कुछ ही किलोमीटर दूर गांव मिढ़ौली मिर्जापुर ब्लाक कादरचैक के एक शरीफ और दीनदार परिवार के शेख नासिर बख्श के घर में हुई।
अकील बख्श की शुरूआती तालीम गांव के ही स्कूल से हुई जिसके बाद हाईस्कूल बदायूँ शहर के क्रिश्चियन मिशन स्कूल से पास किया और जीआईसी बदायूं से इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगरा से बीटीसी की ट्रेनिंग की और उसके बाद अपने बड़े भाईयों की तरह ही नौकरी न करके कारोबार करने का फैसला किया, और यहीं फैसला उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ और उन्होंने देश की राजधानी दिल्ली जाकर मेंटल का कारोबार शुरू किया। इस कारोबार में उनका कोई खास तजुर्बा नही था, शुरूआत में बहुत मुशिकलों और परेशानियों का सामना करना पड़, धीरे.धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और उनका कारोबार अपने मुल्क के बाहर भी बड़ गया।
अकील बख्श ने अपनी जिन्दगी के एक खुशगवार लम्हें के बारे में बताते हुए कहा, कि जब में घर से कारोबार करने के लिए दिल्ली आया तो मेरा एक ख्वाब था कि इतना पैसा कमा लूं कि यहां रहने को थोड़ी सी जमीन खरीद सकूँ और उस जमाने की मशहूर मोटरसाईकिल जावा खरीद सकूं, जिसके बाद जिन्दगी में एक वक्त ऐसा भी आया कि जावा मोटरसाईकिल का प्रोडक्शन बंद होने के बाद मोटरसाईकिल फैक्ट्री ,मैसूर (कर्नाटक) खरीदने का ऑफर मेरे पास आया और हमने उस नीलामी में हिस्सा लेकर बोली लगाई जिसके बाद खुदा के करम से और उच्च बोली होने के कारण वह फैक्ट्री हमें मिल गयी। जिसके बाद फैक्ट्री पर कब्जा लेने के लिए जब मेरे सामने फैक्ट्री का ताला खोला गया तो एक हॉल में मेरे सामने सैकड़ों जावा मोटरसाईकिलें खड़ी थी, तो सबसे पहले मैनें अल्लाह का शुक्र अदा किया कि जावा की एक मोटरसाईकिल खरीदने का मेरा ख्वाब था, लेकिन आज अल्लाह के करम से मैने आज उस मोटरसाईकिल की फैक्ट्री खरीद ली।
बताते चले कि अकील बख्श ने तमाम गरीब लड़कियों की शादी का जिम्मा उठाकर उनके हाथ पीले कर उनका घर बसवाया है,वहीं दर्जनों गरीब बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा भी अकील बख्श उठा रहे है। इतना ही नही उनके मकान पर पहुंचने वाले हर गरीब शख्स को इज्जत से बैठालना उसकी मदद करना उनकी आदत में शुमार है। इतनी कामयाबी हासिल करने के बाद भी अकील बख्श के मिजाज में वही सादगी वहीं स्वाभाव है। अपनी इस कामयाबी के पीछे वालिदेन की नेकियों और दुआओं की अहमियत बताते है, और आज के नौजवानों को भी हिम्मत और मेहनत से काम करने की तरतीब देते है। अकील बख्श ,, के वालिद मरहूम शेख नासिर बख्श कपड़े के कारोबारी थे, जो शुरूआत में दिल्ली में कारोबार करते थे बाद में दिल्ली को छोड़कर अपने गांव में आकर कारोबार करने लगे थे। शेख नासिर बख्श ऊर्दू एवं फारसी के अच्छे जानकार थे, वह एक सखी और फकीराना मिजाज के शख्स थे, शरीयत के पाबंद और जहज्जुद गुजार उनकी मेहमान नवाजी और सखावत की मिसाल आज भी दी जाती है। शेख नासिर बख्श की पैदाईश सन 1898 और सन 1971 में उनका इन्तकाल हुआ था। अकील बख्श ,, अपने वालिद के तीन बेटों में सबसे छोटे बेटे है। सबसे बड़े बेटे जमील बख्श साहब मिर्जापुर के स्कूल से हेडमास्टर के पद से रिटायर्ड हुए थे, वह भी आसपास के क्षेत्र में इज्जतदार और सियासी और सामाज में दखल रखने वाले शख्स के तौर पर जाने जाते थे। उनके मझले बेटे शकील बख्श भी उझानी ब्लाक के गांव सदाढेर के स्कूल से मास्टर के पद से रिटायर्ड है और बदायूं शहर में ही उनकी रिहायश है,वह भी निहायत नेक और खल्क के खिदमत गुजार शख्स है।