विद्यालय निरीक्षण पर घमासान

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 निरीक्षण का क्या है उद्देश्य, धन संचय अथवा शैक्षणिक वातावरण को करना है दूषित। यदि लिपिक के द्वारा विद्यालयों का निरीक्षण संभव है, तो शिक्षकों की टीम भी शिक्षा कार्यालयों के निरीक्षण लिए हो गठित। व्यवस्था परिवर्तन के लिए पदाधिकारियों की मानसिकता बदलनी होगी।

मो0 रफी 

9931011524

rafimfp@gmail.com

          लिपिक के संबंध में प्रसिद्ध है कि सौ भ्रष्ट लोग मरते हैं तो एक लिपिक का जन्म होता है। ऐसे में लिपिक से विद्यालयों के निरीक्षण का उद्देश्य क्या है? मेरी समझ में दो बातें हैं, एक लिपिक के माध्यम से अधिक से अधिक धन संचय और दूसरा है विद्यालय की शैक्षणिक वातावरण को दूषित करना। दोनों ही हालत विद्यालय के हित में नहीं है। जब कोई लिपिक निरीक्षण में जाएगा तो वह अधिकारी वाले तेवर में होगा, शिक्षक से यह हजम नहीं होगा, इसलिए विद्यालय रणक्षेत्र में परिवर्तित हो सकता है। हालांकि पहले से प्रखण्ड कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक ‘ सर ‘ कह कर संबोधित करते हैं जो अशोभनीय है वहीं निरीक्षण का अधिकार मिलने से शिक्षकों के बीच लिपिक की अफसरी का अब रौब बढ़ जाएगा। 

          एक शिक्षक जो राष्ट्र निर्माता की भूमिका में है, प्रधानाध्यापक के कुर्सी की गरिमा इतनी होती है कि पदाधिकारी भी उस पर बैठने से परहेज करते हैं, अब क्या होगा, नाम नमूद के पदाधिकारी अर्थात् लिपिक इनकी गरिमा, इनकी प्रतिष्ठा का सम्मान कर पाएंगे? जब विद्यालय का बार – बार निरीक्षण होगा तो निश्चित है शिक्षक, प्रधानाध्यापक का सारा समय निरीक्षण से पूर्व की तैयारी और निरीक्षण के बाद समीक्षा अथवा पैरवी में लगेगी। यह कटु सत्य है जिससे विद्यालय का शैक्षणिक वातावरण प्रभावित होगा। इससे शिक्षा विभाग अथवा सरकार के उद्देश्य का पता चलता है। शिक्षकों को लेकर सरकार असंवेदनशील तो है ही लेकिन छात्र/छात्राओं के प्रति भी संवेदनहीन लगती है। मैं बिल्कुल स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जब तक शिक्षकों को सम्मान नहीं मिलेगा तब तक शिक्षा का विकास नहीं होगा। आप किसी को डरा – धमकाकर और अपमानित करके काम लेना चाहते हैं तो इससे स्पष्ट है कि आप स्वयं भी धोखा में हैं और दूसरों को भी धोखा में डाल रहे हैं। यदि सरकार लेस मात्र भी शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार चाहती है तो बिना शर्त शिक्षकों की तमाम जायज मांगों को मान ले, शिक्षकों को अपमानित करने वाले अव्यवहारिक, अशोभनीय निर्णय वापस ले ले। शिक्षकों को सम्मान दिया जाए और योग्य शिक्षकों से शिक्षा कार्यालयों का निरीक्षण कराया जाए।

          विद्यालय का निरीक्षण वास्तव में शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन के लिए करना है तो पहले निरीक्षण करने वाले पदाधिकारियों की मानसिकता को बदलना जरुरी है। धर लिया और कार्रवाई कर दी से आगे बढ़ना होगा, क्योंकि यह निगेटिव सोच है। पौजिटिव सोच तो यह है कि आपने निरीक्षण के क्रम में जो खामियां पकरीं उसका सुधार होना चाहिए। पदाधिकारियों द्वारा स्वयं कर के दिखाना चाहिए, कर के दिखाने से बच्चे सीखते हैं तो शिक्षक भी सीखेंगे और बेहतर परिणाम देंगे। खामियां सुधारने के लिए समय दिया जाय, आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण दिया जाय। न तो शिक्षकों को डराया जाय न ही धमकाया जाय, शिक्षकों को उनकी गरिमा के प्रति जागरूक किया जाए। यही शिक्षक और शिक्षा के हित में है, तभी एक स्वक्ष, सुंदर और समरस समाज अथवा राष्ट्र निर्माण की हम कामना कर सकते हैं।

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