आवश्यकता है इस विषय पर, शिक्षकों के भविष्य के प्रश्न पर गंभीरता से बिना किसी भेदभाव के छोटे बड़े सभी संगठनों के साथी एक साथ बैठकर बड़ा निर्णय लें और सरकार को हमारी मांगों को मानने के लिए बाध्य करें
मो0 रफी
9931011524
सरकार की तुगलकी फरमान का विरोध शिक्षक संगठनों का कर्तव्य है। दूसरी तरफ शिक्षक संगठनों का उद्देश्य शिक्षकों का सही दिशा में नेतृत्व करना, उसका मार्गदर्शन करना भी है। परंतु समय और परिस्थितियों के अनुकूल ही निर्णय लेना बुद्धिमानी है। नई अध्यापक शिक्षा नियमावली 2023 शिक्षकों और राज्य के शिक्षित समाज के लिए धोखा है जिसका विरोध हमारा परम कर्तव्य है, जाति आधारित गणना न करना सरकार से विरोध प्रकट करने का एक बड़ा माध्यम था, परन्तु परिस्थितिवश हमने जाति आधारित गणना करने का सामुहिक निर्णय लिया। इसके पीछे हमारा उद्देश्य अपने शिक्षक बंधुओं का सही मार्गदर्शन करना है। मैं बता दूं कि पटना में 24 शिक्षक संगठनों की बैठक हुई और समन्वय स्थापित हुआ तब से ही संगठनों के बीच की राजनीति उजागर हो गई। आप भलीभांति परिचित हैं कि बिहार में मात्र 24 संगठन ही नहीं हैं, जाहिर है कुछ संगठनों को जानबूझकर नहीं बुलाया गया अथवा वे जानबूझकर सम्मिलित नहीं हुए। जब पूर्व से 28 संगठनों का समन्वय बना हुआ है जिसने वर्ष 2019-20 में सफल आंदोलन का नेतृत्व किया, परन्तु लाॅक डाउन ने सब पर पानी फेर दिया। 28 संगठनों का समन्वय समिति होते 24 संगठनों वाली समन्वय समिति क्यूं? इस नई समन्वय समिति की दूसरी बैठक में 16 संगठनों की ही उपस्थित हुई, इसके बाद समूह तास के पत्तों की तरह बिखरता चला गया। कहना है कि आंदोलन संगठित नहीं हो सका, शिक्षक संगठनों के अहम ने शिक्षकों को असमंजस में डाल दिया। ऐसे में शिक्षकों का किसी प्रकार का शोषण न हो इसलिए हमें भी जाति आधारित गणना के पक्ष में निर्णय लेना पड़ा। वर्ष 2018 के आंदोलन में जिसने आंदोलन में भाग लिया उसे हड़ताल के बाद अकेला छोड़ दिया गया था, जबकि आंदोलन के कुछ बड़े साथियों ने चुप चोरी हाजरी बना ली थी और अपना वेतन भी सबसे पहले प्राप्त कर लिया था। आप स्वयं विचार करें कि कुछ शिक्षक आंदोलन पर होते और कुछ काम पर, संगठन जो प्रखण्ड कार्यालय पर सांप की तरह कुण्डी मार कर बैठी है वह निश्चित ही हमारे शिक्षकों का भुगतान के नाम पर शोषण करती। इसलिए हमने जाति आधारित गणना करने का निर्णय लिया। हमारा विरोध सरकार की नीतियों से है न कि बिहार की जनता या उसके हित से। जाति आधारित गणना बिहार की गरीब जनता, पिछड़े कमजोर तबकों के पक्ष में है। इसलिए हम गणना करते हुए सरकार की गलत नीतियों का, नई नियमावली 2023 का विरोध तब तक करते रहेंगे जबतक सरकार हमारी मांगों के अनुरूप संशोधन करने को तैयार नहीं हो जाती। यह संकल्प केवल मेरा नहीं है बल्कि लगभग सभी शिक्षक संगठनों का भी यही संकल्प है, परन्तु हो क्या रहा है, हम दिशाहीन हो गये हैं। आवश्यकता है इस विषय पर, शिक्षकों के भविष्य के प्रश्न पर गंभीरता से बिना किसी भेदभाव के छोटे बड़े सभी संगठनों के साथी एक साथ बैठकर बड़ा निर्णय लें और सरकार को हमारी मांगों को मानने के लिए बाध्य करें। अब तो उच्च न्यायालय ने जाति आधारित गणना पर तत्काल रोक लगा दी है, यदी यही एक मात्र हथियार हमारे हाथ होती तो निश्चित ही हम जंग लड़ने से पूर्व ही हार जाते। इसलिए हमने कहा था के जाति आधारित गणना का विरोध मात्र एक माध्यम था न कि अन्तिम।
माध्यमिक शिक्षक संघ ने भी विरोध का बिगुल फूंक दिया है, इस संघ की बड़ी विशेषता है कि संपूर्ण शिक्षक एक ही बैनर तले संगठित हैं, परन्तु विडम्बना है कि उनकी संख्या प्रारंभिक शिक्षकों से काफी कम है। मैं प्रारंभिक शिक्षकों और संगठनों के जिम्मेदारों से कहना चाहुंगा कि यह अच्छा अवसर है माध्यमिक शिक्षक संघ ने आंदोलन की घोषणा की है, प्रारंभिक वाले भी उनकी आवाज से अपनी आवाज मिला दें तो धरती और आसमान गुंज उठेगा, सरकार को बैक फुट पर आना होगा और हमारी मांगों पर सकारात्मकता दिखाना ही होगा। शिक्षक संगठनों का बड़ा प्रसिद्ध नारा है ‘ आवाज दो हम एक हैं ‘ लेकिन क्या यह नारा, नारा ही रह जाएगा?