अफसाना एवं नाविल के बादशाह थे शीन मुजफ्फरपुरी
नुजहत जहां।।
देश के प्रसिद्ध लेखक एवं कथाकार, बेबाक पत्रकार पुरस्कार विजेता, दर्जनों पुस्तकों के रचयिता जिनकी शोहरत केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी आज है, उनके जीवन एवं व्यक्तित्व पर लगभग 14 लोगों को पीएचडी की उपाधि प्राप्त है जो मुल्के हिंदुस्तान के लिए गर्व की बात है क्योंकि जब किसी लेखक कवि या अफसाना निगार पर कोई छात्र या छात्राएं शोध करते हुए उपाधि हासिल करता है उस समय उन छात्राओं के लिए गर्व की बात होती है, 15 जुलाई को साहित्यिक जगत में दिवंगत शीन मुजफ्फरपुरी के नाम से मशहूर शख्सियत का जन्मदिन था। शीन मुजफ्फर पुरी का असली नाम मुहम्मद वली-उर-रहमान शैदा था ।उनके पिता हाफ़िज़ मुहम्मद ऐनुल-हक थे। शीन मुजफ्फरपुरी की पैदाइश 15 जुलाई 1920 को बाथ असली थाना नानपुर जिला (पूर्व मुजफ्फरपुर ) वर्तमान सीतामढी में हुई थी , शीन मुजफ्फरपुरी के पिता कलकत्ता की एक जामा मस्जिद में इमाम थे और अपने बेटे के जन्म के बाद वह केवल एक वर्ष ही जीवित रहे। शीन मुजफ्फरपुरी की प्रारंभिक शिक्षा, प्रशिक्षण और पालन-पोषण उनकी फुफी की देखरेख में होती रही एक निजी शिक्षक के द्वारा घर पर ही अंग्रेजी और अंकगणित का अध्ययन किया। उसके बाद 1931 में मदरसा आलिया कलकत्ता दाखिला लिया और मैट्रिक की परीक्षा 1937 में अब्दुल्ला सोहरवर्दी मेमोरियल एच-ई स्कूल से दिया और आला नम्बर से आप कामयाब हुए। मैट्रिक के बाद आप अपनी माली हालत बेहतर न रहने की वजह से पढ़ाई छोड़कर कर आप अख़बार की दुनिया से जुड़ गए। शीन मुजफ्फरपुरी का साहित्यिक जीवन 1937 के आसपास शुरू हुआ। उसके बाद उन्होंने अपनी ज़िंदगी में काफी उतार चढ़ाव भी देखे। आप ने भारत के विभिन्न शहरों की यात्रा की, पाकिस्तान भी गए। अख़बारों और पत्रिकाओं के अलावा उन्होंने फिल्मों और रेडियो में भी हाथ आजमाया, लेकिन 1960 के आसपास बिहार आ गए और पटना के होकर रह गए ।
विभिन्न समाचार पत्रों में काम करते हुए अंततः वे बिहार उर्दू अकादमी की पत्रिका “ज़बान-ए- अदब” के संपादक बने और आख़री लम्हे तक पटना ही उनकी कर्मस्थली रही। और अंततः 14 अगस्त 1996 को उनकी मृत्यु हो गई। और उन्हें पैतृक गांव बाथ असली के कब्रिस्तान (सीतामढ़ी) में दफनाया गया। उनके बच्चों में चार बेटे और तीन बेटियाँ थीं। दो बेटे भी इस दुनिया से चले गए। तीसरे सबसे बड़े बेटे अरमान अहमद अहमद ग़ालिब अपने पिता की नक्शे-कदम पर चलते हुए शायरी की दुनिया में चले गए लेकिन 2001 के बिहार पंचायत चुनाव में नानपुर प्रखंड के बाथ असली पंचायत से मुखिया के चुनाव में पहली बार निर्वाचित हुए जो लगातार 20 साल तक बाथ असली पंचायत के मुखिया बने रहे लेकिन 2021/22 के पंचायत चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा हालांकि अब वह एक राजनीतिक शख्सियत के मालिक बन चुके हैं, लेकिन उन्हें शायरी का शौक अब भी है। शीन मुजफ्फरपुरी को राष्ट्र भाषा परिषद और विभिन्न उर्दू अकादमियों से कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उनकी मृत्यु के बाद, ज़बान -ए- अदब पटना में उनके बारे में एक कॉलम प्रकाशित किया गया था। फिर 12/11/नवंबर 2009 को बिहार विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में उन पर एक सेमिनार हुआ, जो 2011 में रौदाद-ए-जरिदह में प्रकाशित हुआ.
शीन मुजफ्फरपुरी के साहित्यिक व्यक्तित्व का एक और पहलू पत्रकारिता के प्रति उनकी आजीवन प्रतिबद्धता है। उन्होंने लाहौर, कराची, दिल्ली, कलकत्ता और पटना की विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में लेख लिखना जारी रखा।
शीन मुजफ्फरपुरी की निम्नलिखित किताबें प्रकाशित हुई जो निम्नलिखित हैं:
1, आवारा गर्द के खोतुत (अफसाने) 1946 में उनका दूसरा संस्करण ” बंद कमरा” शीर्षक के तहत प्रकाशित हुआ।
2, फरहत (नोउल्ट) 1949
3, दुखती रगें(अफसाना) 1949
4, कड़वे घूंट (अफसाना) 1949
5, हज़ार रातें (नाविल) 1955
6, चांद का दाग़ (नाविल) 1956
7, लड़की जवान हो गई (अफसाना) 1956
8,, तीन लड़कियां एक कहानी (नाविल) 1959
9, खोटा सिक्का (नाविल) 1961
10, दूसरी बदनामी (अफसाना) 1965
11, हलाला (अफसाना) 1976
12, आदमी मुस्कुराहट (हास्य) 1980
13, खून की मेहंदी (नाटक) 1984
14, तलाक़ तलाक़ तलाक़ (अफसाना) 1987
15 कानून की बस्ती (अफसाना) 1989
16, न्यू अल्फ लेली 1991
17, रक़्से बिस्मल 1993 इसके अलावा भी कई किताबें शीन मुजफ्फरपुरी की आ चुकी हैं।