* महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय से पर्यावरण विज्ञान विषय में पीएचडी करने वाले हृदेश कुमार यादव प्रथम छात्र हैं।*
हृदेश कुमार यादव ने महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली के (बरेली कॉलेज, बरेली) प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह, के निर्देशन में पर्यावरण विज्ञान विषय में अपना शोध (पीएचडी) कार्य पूरा किया है जिसका शीर्षक “कुछ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों और संभावित जैव उपचारात्मक उपायों पर पर्यावरण प्रदूषकों का प्रभाव” (EFFECT OF ENVIRONMENTAL POLLUTANTS ON SOME ECONOMICALLY IMPORTANT PLANTS AND POSSIBLE BIOREMEDIAL MEASURES) है. उन्होंने बताया यह कार्य पर्यावरण विज्ञान विभाग में किया गया है जिसमें मैंने 5 पौधों को लिया है. उन्होंने बताया शोध मे फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी का प्रभाव इन 5 पौधों पर देखा है तथा उसका उपचार भी कैसे किया जाए इसका भी अध्ययन मैंने अपने कार्य में किया है. – उन्होंने बताया जिन 5 पौधों को अपनी शोध में शामिल किया है उनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं :–
1 प्याज (Allium cepa) का पौधा
2 मूंग (Vigna radiata) का पौधा
3 तंबाकू (Nicotiana tabacum) का पौधा
4 मेथी (Trigonella foenum – gracecum) का पौधा,
5 बैंगनी दिल (Tradescantia pallida) का पौधा
वर्तमान जांच से पता चला है कि विभिन्न उद्योगों से उपचारित अपशिष्टों ने आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण संयंत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला. अधिकांश औद्योगिक प्रवाह को बहुत जटिल मिश्रण के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जिसमें बड़ी मात्रा में अकार्बनिक और कार्बनिक घटक शामिल होते हैं। कार्बनिक, साथ ही अकार्बनिक प्रदूषक दोनों ने पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। इस प्रकार, से फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी में जो प्रदूषक होते हैं वे खाद्य श्रृंखला के द्वारा हमारे शरीर के अंदर चले जाते हैं जिससे मानव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यहां तक कि यह आनुवंशिक सामग्री के साथ हस्तक्षेप कर सकते हैं,अर्थात बहिःस्राव फाइटोटॉक्सिक के साथ-साथ जीनोटॉक्सिक दोनों हैं.
अपने अध्ययन में मैंने यह पाया कि आम तौर पर कार्बनिक प्रदूषकों से दूषित कीटनाशक अपशिष्ट इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग के बहिःस्राव की तुलना में अधिक विषाक्त होते है जो भारी धातुओं (अकार्बनिक प्रदूषकों) से भरा होता है. फसलों की सहिष्णुता और संवेदनशीलता भिन्न होती है, उदाहरण के लिए, मूंग कम सांद्रता के लिए प्रोमोंटरी प्रभाव दिखाता है.
डाइलुटेड अपशिष्टों से सिंचाई करने से पहले पौधों की उचित जांच की जानी चाहिए। इसलिए,यह आवश्यक है कि फसलों को सिंचाई के लिए अनुशंसित करने से पहले फसलों में औद्योगिक अपशिष्ट के उपयोग के प्रभाव का आकलन किया जाए.
हालांकि,अध्ययन से फसलों की सिंचाई के उद्देश्य से अपशिष्ट के साथ नीम भूसी समाधान (बायोरेमेडिएशन) का उपयोग करने के सकारात्मक और उत्तेजक प्रभावों का पता चलता है. औद्योगिक प्रक्रिया और संचालन से उत्पन्न प्रदूषण को खत्म करने या कम करने के लिए एक उपयुक्त नियंत्रण तकनीक की आवश्यकता है. अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अज्ञात विनिर्देशों के रसायनों के जटिल मिश्रण वाले औद्योगिक अपशिष्ट, असुरक्षित खुले लैंडफिल में डंप किए गए,फसलों में फाइटोटॉक्सिसिटी के साथ-साथ जीनोटॉक्सिसिटी का कारण बनते हैं और जीवित प्राणियों के लिए स्वास्थ्य खतरे पैदा कर सकते हैं.
यथा,जल निकासी चैनलों में इसके निपटान से पहले अपशिष्ट जल का उपचार आवश्यक है.इसके अलावा, औद्योगिक बहिःस्राव के साथ फसल सिंचाई में डाइलुटेड अपशिष्टों के साथ-साथ जैव उपचार का उपयोग किया जा सकता है.
इस मौके पर बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव,बरेली कालेज के प्राचार्य प्रोफेसर ओपी राय ,पूर्व प्राचार्य व उ.प्र.लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य प्रो. सोमेश यादव, पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ ए पी सिंह ,डॉ जसपाल सिंह, रूहेलखंड विश्वविद्यालय केमिकल विभाग के अध्यक्ष प्रो. करुणा मैसूर, रसायन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ अनुराग मोहन भटनागर, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय उत्तराखंड के डॉ.आलोक सागर गौतम, प्रो. मीना यादव, चीफ प्रॉक्टर प्रो.आलोक खरे, डॉ गौरव भूषण ,डॉ निष्ठा सेठ,डॉ अनामिका अग्रवाल डॉ रवि गंगवार डॉ बलवीर सिंह, डॉ संदीप रघुवंशी, सहित परिवार व साथियों ने बधाई एवं शुभकामनाएं दी