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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सोहनलाल द्विवेदी की स्मृति  में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ : दिनांक : 04 मार्च, 2023

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सोहनलाल द्विवेदी की स्मृति  में बाल साहित्य संगोष्ठी समारोह के शुभ अवसर पर शनिवार 04 मार्च, 2023 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन, निराला सभागार लखनऊ में किया गया।
इस अवसर पर दिल्ली से पधारे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 दिविक रमेश ने सोहन लाल द्विवेदी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हर आयु वर्ग के व्यक्ति को बाल साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। बाल साहित्य केवल बच्चों के लिए ही नहीं होता है बल्कि सभी को पढ़ना चाहिए। महानगरों में ही रहने वाला बच्चा ही बाल साहित्य को नहीं पढ़ता, ग्रामीण परिवेश में रहने वाला बालक भी उसको पढ़ता है। बाल रचना बच्चों के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। रचना प्रक्रिया की  दृष्टि से सभी साहित्य एक हैं। बाल साहित्य वस्तुतः सिखाने के लिए ही है। बाल साहित्य शिक्षाप्रद होना चाहिए। बाल विमर्श की भी बात होनी चाहिए। वर्तमान की मांग भी है कि बाल विमर्श पर व्यापक चर्चा हो। रचनाकार जब स्वयं से प्रश्न करता अथवा जिज्ञास प्रकट करता है तो एक अच्छा साहित्य की रचना करता है। रचना कलात्मक अभिव्यक्ति है। बाल साहित्य बच्चों को आवाज देता है। द्विवेदी जी की कविताएँ कलात्मकता व रचनात्मकता से परिपूर्ण हैं।
स्नेहलता, ने कहा कि सोहन लाल द्विवेदी जी अमर कवियों में से हैं। उनकी रचनाएं हमें प्रेरणा देती हैं। लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती..। द्विवेदी जी की ये अमर पंक्त्यिँ जनमानस के मन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती हैं। स्नेहलता ने अपनी बाल रचना ‘खबर जंगल से आई, होली आई, होली आई‘
‘आज है आधार कल का, कल कभी न आयेगा…… सुनाई।
रमाशंकर ने कहा कि साहित्य व फिल्म दोनों का समाज निर्माण में महान भूमिका है। बाल फिल्में बच्चों के मन मस्तिष्क को काफी प्रभावित करती हैं। बच्चों में अनुशासन होना चाहिए परन्तु उनको हतोत्साहित न करें। बच्चों में विश्वास से अधिक आत्मविश्वास का होना आवश्यक है। बाल फिल्मों का उद्देश्य बच्चों में मनोरंजन के साथ-साथ चरित्र निर्माण का भी होना चाहिए। रमाशंकर जी ने अपनी बाल आधारित कहानी का पाठ भी किया।डॉ0 जाकिर अली ‘रजनीश‘, ने कहा  कि बाल विज्ञान कथा का प्रारम्भ 19वीं शताब्दी से हुआ। बाल विज्ञान कथाकारों को वो स्थान वर्तमान में मिल नहीं रहा है, जो मिलना चाहिए था। विज्ञान कथा का लेखन करने के लिए विज्ञान की जानकारी तथा उसे पढ़ना होगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण  विज्ञान कथा के लिए आवश्यक है। बाल विज्ञान कथा के लिए विशेष सोच व मानसिकता की आवश्यकता होती है। विज्ञान कथा लिखना एक चुनौती पूर्ण कार्य है। कथा का जुड़ाव समाज से होना चाहिए। विज्ञान कथा लेखन में सजगता की अनिवार्यता होनी चाहिए।
इस अवसर पर सोहन लाल द्विवेदी जी की पौत्री आकांक्षा दिवेदी ‘बिन्दकी‘ फतेहपुर से पधारी उन्होंने ने अपने बाबा को याद करते हुए कहा- माँ का ऑचल लाल करो, लाल करो, हड़ताल करो जैसा कालजयी नारा देने वाले सोहन लाल द्विवेदी जी ने आजादी के प्रति जागरुक किया। उन्होंने संस्मरणों में बताया कि गुलामी का लड्डू खाने से अच्छा है कि आजादी के चने चबाना। उन्होंने अपने पूज्य बाबा जी के मधुर संस्मरणों को रोचक ढं़ग से सुनाया। ‘‘ कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती… उनकी अमर पंक्तियों को सबके समक्ष प्रस्तुत किया।
सुश्री श्वेता जायसवाल व उपसाना जायसवाल ने सोहन लाल द्विवेदी जी की कविता का पाठ किया।
हिन्दी संस्थान के द्वितीय तल पर स्थिति जीर्णाद्धारकृत निराला सभागार का लोकार्पण भी सम्पन्न हुआ। अब संस्थान के दोनों सभागार- प्रेमचन्द एवं निराला साहित्यिक कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध है।
डॉ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया।  इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया।
सम्पर्क सूत्र-निधि वर्मा

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