सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिलकिस बानो केस में गुजरात सरकार के दोषियों को ‘चुनिंदा’ छूट नीति का लाभ देने के कदम पर सवाल उठाया और कहा कि तब तो सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 2002 में राज्य में हुए गोधरा दंगे के दौरान गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, “छूट की नीति चयनात्मक रूप से क्यों लागू की जा रही है? तब तो पुनः संगठित होने और सुधार का अवसर प्रत्येक कैदी को दिया जाना चाहिए, न कि केवल कुछ चुनिंदा दोषियों को।“ पीठ ने गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू से पूछा, क्या 14 साल के बाद उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी दोषियों को छूट का लाभ दिया जा रहा है?