केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह कानून बनाने जैसा होगा। यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। एक प्रावधान को खत्म करने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां महिलाओं की शादी के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं होगी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अगर अदालत इस दलील पर विचार करेगी तो यह संसद को न्यूनतम आयु तय करने का निर्देश देने जैसा होगा।
शीर्ष अदालत ने 20 फरवरी के अपने आदेश का हवाला भी दिया, जिसमें उसने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। इस याचिका में भी पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी उम्र में समानता की मांग की गई थी। जनहित याचिका में कहा गया था कि देश में शादी के लिए अलग आयु का निर्धारण किया गया है। यह व्यवस्था संविधान में दिए गए समानता के अधिकार और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है। इसलिए इस व्यवस्था को समाप्त कर विवाह की आयु समान की जाए।