इस नए वर्ष पर कुछ नया कीजिए।
कुछ भी करिए मगर मत नशा कीजिए।
जाते जाते दिसंबर ये कहने लगा।
मुस्कुराकर मुझे अब विदा कीजिए।
दूर हों हर किसी के सभी रंज -ओ-गम,
हो सभी का भला ये दुआ कीजिए|
जिसने दीपक बुझा कर अंधेरा किया,
कौन सा है वो मंजर पता कीजिए|
नेह का बीज मन में उगाओ जरा,
यूं न हरगिज किसी का बुरा कीजिए|
प्यासे लोचन से जग को निहारो जरा,
बेवफा हो भी उससे वफ़ा कीजिए|
धरती मां ने तो सब कुछ दिया है तुम्हे,
आप भी फर्ज अपना अदा कीजिए|
मोक्ष भी इस धरा पर ही मिल जाएगा,
भूलकर गम भी,खुलके हंसा कीजिए|
*अंशु छौंकर “अवनी” (आगरा)*