गजल

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इस नए वर्ष पर कुछ नया कीजिए।
कुछ भी करिए मगर मत नशा कीजिए।

जाते जाते दिसंबर ये कहने लगा।
मुस्कुराकर मुझे अब विदा कीजिए।

दूर हों हर किसी के सभी रंज -ओ-गम,
हो सभी का भला ये दुआ कीजिए|

जिसने दीपक बुझा कर अंधेरा किया,
कौन सा है वो मंजर पता कीजिए|

नेह का बीज मन में उगाओ जरा,
यूं न हरगिज किसी का बुरा कीजिए|

प्यासे लोचन से जग को निहारो जरा,
बेवफा हो भी उससे वफ़ा कीजिए|

धरती मां ने तो सब कुछ दिया है तुम्हे,
आप भी फर्ज अपना अदा कीजिए|

मोक्ष भी इस धरा पर ही मिल जाएगा,
भूलकर गम भी,खुलके हंसा कीजिए|

*अंशु छौंकर “अवनी” (आगरा)*

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