राहुल गांधी की दाढ़ी और सद्दाम हुसैन

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हिसाम सिद्दीकी**** EDITOR:Jadid Markaz

असम के वजीर-ए-आला हेमंत बिस्वा सरमा जब भी मुंह खोलते हैं कोई न कोई फूहड़पन की ही बात करते हैं। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने उनकी ड्यूटी गुजरात असम्बली एलक्शन की मुहिम में लगा रखी थी वहां एक जलसे में उन्होने राहुल गांधी की बढी हुई दाढी पर तकरीर करते हुए उन्हें सद्दाम हुसैन जैसा बता दिया। चूंकि उसके पास बीजेपी की कामयाबियां बयान करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने राहुल गांधी की दाढी को ही मुद्दा बनाने की सतही कोशिश की। उन्होने कहा कि राहुल गांधी को अगर शक्ल बनानी ही थी तो नेहरू जैसी बनाते, सरदार पटेल जैसी बनाते और गांधी जैसी बनाते तो और अच्छा होता, लेकिन उन्होंने तो अपना चेहरा सद्दाम हुसैन जैसा बना लिया। अब बिस्वा सरमा से कौन पूछे कि गुजरात एलक्शन में राहुल गांधी का चेहरा कौन सा मुद्दा है? हैरत की बात यह है कि बिस्वा सरमा के इस सतही बयान पर वजीर-ए-आजम मोदी से नीचे तक पूरी बीजेपी खामोश रही। ऐसा लगता है कि भले ही बीजेपी मंे जाने के बाद वह असम के वजीर-ए-आला बन गए हों, लेकिन कांग्रेस से निकलने की टीस वह भुला नहीं पा रहे हैं। वह जब कांग्रेस में थे तो अक्सर उस वक्त के वजीर-ए-आला तरूण गोगोई, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए खुशामदाना बयानबाजी करते थे। अब शायद वह वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह को खुश करने के लिए ऐसी सतही बयानबाजी कर रहे हैं।

राहुल गांधी अगर सद्दाम हुसैन की तरह दिखते भी हैं तो इसमें एतराज की क्या बात है। सद्दाम हुसैन जब तक इराक के सदर थे मुस्लिम मुमालिक के तमाम हुक्मरान के मुकाबले भारत के सबसे ज्यादा गहरे दोस्त रहे। वह इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन कहते थे और चन्द्रशेखर को बड़ा भाई। 1974-75 में हिन्दुस्तान तेल के जबरदस्त बोहरान में फंसा हुआ था तो सद्दाम हुसैन ने इंदिरा गांधी से कहा था कि आपको जितने तेल की जरूरत हो हम आपको सप्लाई करंेगे, पैसा हो या न हो। इसी तरह चन्द्रशेखर जब वजीर-ए-आजम थे तब भी भारत के सामने तेल का जबरदस्त बोहरान पैदा हो गया था। गैर मुल्की करेेेंसी (डालर) देश के पास नहीं थी उस वक्त सद्दाम हुसैन ने वजीर-ए-आजम चन्दशेखर को फोन करके कहा कि जितना चाहिए तेल हमसे ले लीजिए जब पैसा हो तब भुगतान कर दीजिएगा। उस वक्त अमरीका ने इराक पर जबरदस्त दबाव बना रखा था कि वह भारत को उधार तेल न दे। सद्दाम हुसैन ने इसकी भी तरकीब निकाली, लंदन में मुकीम एक भारतीय बडे़ व्यापारी के नाम उन्होने तेल सप्लाई किया उस व्यापारी ने अपनी कम्पनी से बिलिंग करके कागजी कार्रवाई पूरी की, बाद में उसी के जरिए इराक को तेल का भुगतान हुआ तो सिर्फ बिलिंग करने की वजह से उस व्यापारी को हजारों करोड़ का फायदा हो गया।

अगर राहुल गांधी सद्दाम हुसैन जैसे दिखते हैं तो इसमें शर्म की क्या बात है। यह तो फख्र की बात होनी चाहिए। दुनिया के सबसे बड़े दहशतगर्द अमरीका ने इंसानी तबाही के हथियार बनाकर रखने का झूटा इल्जाम सद्दाम हुसैन पर लगाकर महज तेल के कुआंे पर कब्जा करने की गरज से इराक पर हमला किया। सद्दाम हुसैन अगर चाहते तो वह कुवैत के अमीर की तरह अमरीका का पिट्ठू बनकर उसकी शर्तों पर अपने मुल्क का सदर बने रह सकते थे लेकिन उस बहादुर इंसान ने अमरीका का खुशामदी बनने के बजाए मौत को गले लगाना अपनी शान समझा। सद्दाम के महल पर सैकड़ों बम गिराकर अमरीका ने उसे तबाह कर दिया तो सद्दाम वहां से निकल कर एक खाई में जाकर रहने लगे। अपने ही कुछ गद्दार साथियों की जासूसी की वजह से वह अमरीकी फौज के हत्थे चढ गए। अमरीका ने कानून और इंसाफ को रौंदते हुए उन्हें फांसी की सजा दे दी। उन्हें फांसी चढाए जाने की कार्रवाई की वीडियो बनवाई और पूरी दुनिया में उस वीडियो को इस गरज से वायरल कराया कि पूरी दुनिया के हुक्मरान अमरीका के जुल्म और तानाशाही से खौफजदा हो जाएं। उस वीडियो में साफ दिखता है कि जल्लाद सद्दाम को फांसी का फंदा पहनाते वक्त कांप रहा था तो सद्दाम ने उससे कहा कि तुम क्यों डरते हो तुम अपना काम करो मैं अब अल्लाह के भरोसे।

अमरीका, ब्रिटेन और नाटो मुमालिक ने मिलकर सद्दाम हुसैन को कत्ल करने के मकसद से इराक पर हमला किया। इराक को तबाह कर दिया, सद्दाम की जान ले ली, लेकिन इंसानी तबाही के कोई हथियार इराक में नहीं मिले। यह हकीकत अमरीका और ब्रिटेन दोनों ने तस्लीम की कि इराक में इंसानी तबाही के हथियार होने की जो खुफिया इत्तेला उन्हें मिली थी वह गलत साबित हुई। ब्रिटेन में तो इराक पर हमला करके उसे तबाह करने की जांच के लिए एक कमीशन बना कमीशन ने अपने ही मुल्क की सरकार और वजीर-ए-आजम टोनी ब्लेयर के खिलाफ रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में कहा गया कि सिर्फ तेल के कुओं पर कब्जे की गरज से अमरीका ने झूटा इल्जाम लगाकर इराक पर हमला किया। सद्दाम हुसैन को बेरहमी से कत्ल करने का जुर्म किया और ब्रिटिश वजीर-ए-आजम टोनी ब्लेयर आंख बंद करके उस वक्त के अमरीकी सदर जार्ज बुश के साथ इराक के जुर्म में शामिल रहे।
ऐसा नहीं है कि कुदरत अमरीका जैसे दहशतगर्दों और ब्रिटेन जैसे उनके खुशामदियों को सजा न देती हो बुश के गुनाहों का नतीजा अमरीका भुगत रहा है। जिस मुल्क में स्याह फाम (अश्वेतों) के लिए कोई जगह नहीं थी बल्कि नफरत थी वहां एक स्याह फाम (अश्वेत) आधा मुसलमान-आधा ईसाई बराक ओबामा सदर बन गया और आठ साल तक हुकूमत करता रहा। किसी खातून को सदर या नायब सदर न मानने वाले अमरीका में आज एक स्याह फाम कमला हैरिस नायब सदर हैं जिसकी वालिदा भारत से अमरीका गई थी। अमरीका की दोनों सियासी पार्टियों डिमाक्रेटिक और रिपब्लिकन के पास आज एक भी संजीदा लीडर नहीं है जिसे वह अपने मुल्क का सदर बना सके। कभी गुण्डे-मवालियों जैसी हरकत करने वाला डोनाल्ड ट्रम्प वहां का सदर बन जाता है तो कभी कब्र में पैर लटकाए बूढे जो-बाइडेन को सदर बनाना पड़ता है। ब्रिटेन की हालत तो और भी खराब है। टोनी ब्लेयर का कोई नाम लेवा नहीं है। कभी जिस ब्रिटिश हुकूमत में सूरज नहीं डूबता था और तीन-चौथाई से ज्यादा दुनिया उसके कब्जे में थी उस ब्रिटेन में आज लोग दूध और ब्रेड जैसे जरूरी सामान खरीदने में मआशी (आर्थिक) परेशानी का सामना कर रहे है। सरकार के पास पैसा न होने की वजह से सरकारी प्राइमरी स्कूल बंद कर दिए गए हैं। हेल्थ खिदमात की हालत बदतर है। मुल्क के पास अपना वजीर-ए-आजम बनाने के लिए कोई अंग्रेज लीडर नहीं है। ऋषि सुनाक जिनके दादा पाकिस्तान के पंजाब से नौकरी करने अफ्रीका गए थे। उनके वालिद अफ्रीका से ब्रिटेन पहुंचे वह ऋषि सुनाक आज ब्रिटेन के वजीर-ए-आजम हैं। जिन्हें बड़ी तादाद में लोग भारतीय मूल का भी कहते हैं। अमरीका और ब्रिटेन को कुदरत की जानिब से अभी और भी सजाएं मिलनी बाकी हैं।

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