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शिक्षक नियमावली 2023 से किसे फायदा

शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने सभी शिक्षक संगठनों के नेतृत्वकर्ता को सचिवालय बुलाकर उनकी राय जान ली थी, सभी ने एक स्वर में राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग की थी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने शिक्षकों को शिक्षा विभाग और बीपीएससी की चक्की में पीसने का फार्मूला नियमावली 2023 बना डाला। वास्तव में यह नियमावली नहीं है बल्कि यह महागठबंधन सरकार के लिए अभिशाप और एनडीए के लिए वरदान है

मो0 रफी
9931011524
rafimfp@gmail.com

      बिहार सरकार ने शिक्षकों के लिए छठी बार न‌ई नियमावली का निर्माण किया है, इसे सरकार ने किसी खास मकसद के तहत ही बनाया होगा। सरकार का दो मकसद तो जग जाहिर होता है, एक जनता का फायदा उसको सुविधा उपलब्ध कराना तो दूसरा इससे सियासी फायदा उठाना। लेकिन मेरे समझ से न‌ई शिक्षक नियामवली 2023 इन दोनों विषयों पर खड़ा नहीं उतर रही है। न तो इससे शिक्षकों का बड़ा फायदा होने वाला है, न आम जन का और न ही सरकार में शामिल सियासी पार्टियों का सियासी फायदा। शत् प्रतिशत फायदा विपक्ष में बैठी पार्टियों को होना निश्चित है। 
     वर्तमान सरकार राज्य के गरीब - गुरबा समर्थित सामाजिक न्याय के पोषक सियासी पार्टियों की है। इन्हें दलित - पिछड़ा और अकलियतों का 90 प्रतिशत से भी अधिक समर्थन प्राप्त है। यदि सरकारी विद्यालयों में शत् प्रतिशत बच्चे इसी वर्ग से आते हैं तो शिक्षकों की संख्या भी 80 प्रतिशत से कम नहीं है, अर्थात् जहां एक ओर शिक्षकों को छात्र हित में काम करना चाहिए वहीं सरकार को भी शिक्षकों के हित में ही काम करना चाहिए। इसलिए शिक्षक बिहार सरकार से, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से आशा करते हैं कि वह शिक्षकों के हित में ही काम करें। लेकिन नियमावली 2023 स्पष्ट संकेत देता है कि यह शिक्षक विरोधी है। इससे एक कदम आगे बढ़ कर मैं कहता हूं कि यह नियमावली शिक्षक विरोधी नहीं है बल्कि शत् प्रतिशत यह नियमावली शिक्षा विरोधी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सरकार गंभीर है। इसके लिए प्रयास भी ढ़ेरों हुए हैं लेकिन परिणाम शून्य रहा है। कारण? कारण है शिक्षा देने वाले शिक्षकों की असंतुष्टि। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अच्छे शिक्षकों से ही संभव है और अच्छे शिक्षक अच्छे वेतन से संभव है। मैंने क‌ई बार मंच से भी कहा है कि आप जो भी योजना बना लें हमारे बगैर सफल नहीं हो सकता। इसलिए सरकार योजनाएं बहुत सारी बनाती हैं और इस का क्रियान्वयन भी कराती है, लेकिन शिक्षकों पर कोई तवज्जो नहीं दी जाती है इसलिए वह असंतुष्ट रहते हैं जिसका दुष्प्रभाव शिक्षा पर पड़ता है। फारसी की एक पंक्ति है - " मजदूर दिल खुश कुंद कार ए बेश " अर्थात् जो अपनी मेहनत की मुआवजे की तरफ से मुतम‌ईन (संतुष्ट) हो वह ज्यादा काम करता है। 
      शिक्षक अपने दायित्वों को भलीभांति अदा करने को तत्पर रहते हैं लेकिन सरकार के रवैया से वे उदासीन हैं। नियोजित शिक्षकों का न माजी (भूत) ठीक था, न मौजूदा (वर्तमान) और न ही उसका मुस्तकबिल (भविष्य) महफूज (सुरक्षित) है। यदि एक रोग नियोजित शिक्षकों को लग जाय तो वह इलाज के बिना ही मर जाएगा। ये हमारे सेक्युलर व सामाजिक न्याय की सरकार की पहचान है। जो सरकार हमें पूर्ण वेतनमान न दे सकी, स्नातक ग्रेड एवं टाईम बाॅण्ड प्रोन्नति न दे सकी और जब राज्यकर्मी का दर्जा देने की बारी आई तो डंडी मार दी, जबकि शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने सभी शिक्षक संगठनों के नेतृत्वकर्ता को सचिवालय बुलाकर उनकी राय जान ली थी, सभी ने एक स्वर में राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग की थी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने शिक्षकों को शिक्षा विभाग और बीपीएससी की चक्की में पीसने का फार्मूला नियमावली 2023 बना डाला। वास्तव में यह नियमावली नहीं है बल्कि यह महागठबंधन सरकार के लिए अभिशाप और एनडीए के लिए वरदान है। शिक्षक, महागठबंधन के अपने हैं, उसने एनडीए में शामिल जदयू का समर्थन कत‌ई नहीं किया था, परन्तु राजद को राज्य में नम्बर एक पार्टी बना दिया था। भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी शिक्षकों से अपना बदला चुकता कर रहे हों लेकिन तेजस्वी यादव जी क्या कर रहे हैं? क्या यही गठबंधन है। सरकार में बने रहने के लिए क्या कोई किसी को अपना जनाधार मिटाने की इजाजत दे सकता है? तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य के लिए यह बड़ा प्रश्न है। 
      कौमी असातिजह तंजीम बिहार के प्रदेश अध्यक्ष ताजुल आरफीन स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि न‌ई नियमावली बहाली से बचने की नाकाम कोशिश है, संबंधित पक्ष उनके मंसूबों पर पानी फेर देंगे। माध्यमिक शिक्षक संघ के नेता डॉ0 कयामुद्दीन कह रहे हैं कि शादी कराना हम जानते हैं तो श्राद्ध करना भी हमको आता है। परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर ब्रजवासी व अन्य, शिक्षकों का पक्ष लेकर न्यायालय पहुंच ग‌ए हैं। वर्तमान तो स्पष्ट है शेष भविष्य के गर्भ में है कि न‌ई नियमावली 2023 से सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति होती है अथवा नहीं।
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