कन्नौज : जैसे-जैसे नगर निकाय चुनाव में मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे ही उम्मीदवारों द्वारा प्रचार कार्य में तेजी आती जा रही है। जिले में नगर निकाय चुनाव में नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। नाम वापसी के बाद चुनाव मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों को प्रतीक चिह्न भी मिल चुके हैं। अब यह साफ हो गया है कि चुनाव मैदान में कौन-कौन हैं। टिकट न मिलने से नाराज होकर बगावत का झंडा उठाने वाले कई अहम चेहरों ने नेताओं की मान-मनौव्वल का मान नहीं रखा। नाम वापसी के अंतिम दिन सभी की निगाह अंत तक इन चेहरों पर लगी रहीं। परंतु किसी भी बागी ने नाम वापस नहीं लिया। अब ये बागी ही सत्ता पक्ष हो या विपक्षी दल सभी की जीत में रोड़ बन गए हैं।
नगर निकाय चुनाव-2023 में हर बार की तरह इस बार भी कमोबेश सभी सियासी पार्टियों में अपनी ही पार्टी के बागियों की बगावत से जूझना पड़ रहा है। काफी समय से तैयारी करने के बाद भी टिकट न मिलने से नाराज होकर उन्होंने या तो निर्दलीय या फिर पार्टी बदलकर मैदान में ताल ठोक दी है। हालांकि नामांकन के बाद उन्हें मनाने का खूब जतन हुआ। बड़े सियासी चेहरे उनके दरवाजे तक पहुंचे। मनाने की कोशिश की गई। भविष्य में बेहतर का हवाला देकर मनुहार की गई, लेकिन जनता के समर्थन से चुनाव लड़ने का हवाला देकर बागी तेवर वालों ने एक नहीं सुनी। कुछ ने आश्वासन दिया, लेकिन नाम वापसी के दिन वह अपना दावा वापस लेने नहीं पहुंचे। इसी के साथ तय हो गया है कि जनता के बीच जाने के दौरान पार्टियों को प्रतिद्वंदी चेहरों के साथ ही अपनों की बगावत से भी जूझना होगा।
कन्नौज नगर पालिका से निर्वतमान पालिकाध्यक्ष शैलेंद्र अग्निहोत्री ने सीट महिला आरक्षित होने पर अपनी मां मीना देवी के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से टिकट मांगा। नहीं मिलने पर निर्दलीय ही मैदान में ताल ठोंक दी और उनके समर्थकों का दावा है कि कार्यकाल में अपने काम के बलबूते वे ही जीत के सर्वाधिक करीब हैं। ये और बात है कि भाजपा उम्मीदवार के समर्थक अपना प्रचार करने के साथ-साथ शैलेन्द्र को सबक सिखाने की भी अपील जनता से कर रहे हैं।
कन्नौज नगर पालिका से ही योगी सेना के नेता पवन पांडेय ने भी काफी समय से तैयारी की थी। भाजपा से टिकट मांगा था। नहीं मिलने पर पत्नी आकांक्षा पांडेय को मैदान में उतार दिया और अब वे भी जनता में अपनी पैठ के बलबूते दम-खम ठोंक रहे हैं।
छिबरामऊ नगर पालिका से पिछला चुनाव भाजपा के ही टिकट से जीते निर्वतमान पालिकाध्यक्ष राजीव दुबे को इस बार टिकट नहीं मिला। जानकार बताते हैं कि पिछली बार भाजपा उम्मीदवार ने बगावत कर पर्चा भर दिया था, किंतु उन्हें यह कहकर पार्टी ने मना लिया था कि अगली बार उन्हें मौका दिया जाएगा और पार्टी ने ऐसा ही किया, किन्तु अपने कार्यकाल के कामकाज से संतुष्ट और आत्मविश्वास से भरे राजीव ने खुद ही पिछला समझौता तोड़कर निर्दलीय मैदान में ताल ठोंक दी, अंत तक उन्हें समझाने की पार्टी की कोशिशें नाकाम रहीं।
तिर्वा नगर पंचायत में भाजपा के जिला कोषाध्यक्ष विनोद गुप्ता ने पार्टी की घोषित उम्मीदवार मिताली गुप्ता के खिलाफ अपनी पत्नी व मौजूदा अध्यक्ष मीरा गुप्ता को निर्दलीय ही मैदान में उतारा है। यह और बात है कि विनोद गुप्ता चुनाव से बहुत पहले ही पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र दे चुके हैं। भाजपा चाहती थी कि निवर्तमान चेयरमैन पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ें, किन्तु अपने नफा-नुकसान का आकलन कर उन्होंने निर्दलीय राजनीति करना ही मुनासिब समझा और पूरी दमदारी से वे मैदान में है। कई सर्वे और राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तिर्वा नगर पंचायत में विनोद गुप्ता का तिलस्म तोड़ पाना भाजपा तो क्या किसी भी राजनैतिक दल के लिए लगभग नामुमकिन है।
तिर्वा नगर पंचायत में भाजपा नेता प्रभात वर्मा उर्फ लालू ने अपनी पत्नी विनीता को बसपा के टिकट से चुनाव मैदान में उतारा है। प्रभात पिछला चुनाव खुद भाजपा के टिकट पर लड़े थे।
तालग्राम नगर पंचायत में सपा से टिकट नहीं मिलने पर पूर्व चेयरमैन दिनेश यादव ने भी बागी तेवर अपनाया। पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ वह भी निर्दलीय ही मैदान में डटे हैं।
एक तरफ टिकट न मिलने से नाराज होकर कई चेहरे बागी बने हुए हैं, वहीं दो चेहरे ऐसे हैं, जिन्हें उनकी पार्टी ने उम्मीदवार भी बनाया और उन्होंने बाकायदा नामांकन भी किया। आखिरी दिन पार्टी को झटका दे दिया।
सौरिख नगर पंचायत में अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार पृथ्वीनाथ ने आखिरी दिन अपना नाम वापस ले लिया। इससे पार्टी को गहरा झटका लगा और उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण छह वर्ष के लिए पार्टी से निकाल बाहर किया। इसी तरह तालग्राम नगर पंचायत सीट से बसपा के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार घोषित किए गए सलमान सिकंदर ने भी नाम वापस ले लिया। इन दोनों का यह बागी दांव भी पार्टी को भारी पड़ रहा है। चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है अब देखना है कि सभी पार्टियां अपने बागियों से किस तरीके से निपट पाती हैं।